शनिवार, 17 जून 2023

जैसी कल्पना, वैसा निर्माण


सवाल आदिपुरुष के डॉयलॉग और फिल्मांकन का नहीं है. जिसकी जैसी कल्पना होगी, वह वैसा ही निर्माण करेगा. सवाल तो इस बात है कि यह फिल्म रिलीज कैसे हो गई. जबकि विवादित होने की संभावना के चलते ही कई फिल्में सेंसरबोर्ड में धूल फांक रही है. तब ऐसे में सर्वोत्तम धार्मिक ग्रंथ पर आधारित एक घटिया फिल्म को रिलीज क्यों किया गया. इस फिल्म ने भले ही पहले दिन कमाई के रिकॉर्ड कायम कर लिया हो, लेकिन उनका क्या जिन्होंने महाकाव्य रामायण के आदर्श पात्रों को रामलीला और रामायण सीरियल के साथ-साथ जैसा सुना-देखा, उनके दिल और दिमाग पर क्या बीत रही होगी. यह तो वही जाने. वर्तमान में अभिव्यक्ति की आजादी का इससे सशक्त उदाहरण और कोई दूसरा नहीं हो सकता. जिसने सीधे-सीधे सदियों से चले आ रहे पात्रों के रहन-सहन और संवादों पर ही सीधे अटैक कर दिया. सेंसरबोर्ड ने भी उसको हरी झंडी दी. आखिर क्यों? चलिए मान लिया कि टेक्नोलॉजी के दौर में रामायण को मॉडिफाई करते हुए नए कलेवर में नई पीढ़ी को दिखाना है तो क्या डॉयलॉग की भाषा और शब्दावली मर्यादित हो ही सकती थी. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. रामभक्त हनुमान के विवादित डॉयलॉग को लेकर डॉयलॉग लिखने वाले मनोज मुंतशिर का कहना है कि इसे जानबूझकर ऐसा ही रखा गया है जिससे आजकल के लोग उससे कनेक्ट कर सके. आम बोलचाल की भाषा में यह बात कही गई है. अब यहां पर सवाल है कि यदि नई पीढ़ी को कनेक्ट करना है तो क्या ऐसी भाषा और शब्दावली से फिल्म निर्माता क्या जताना चाहता है कि नई पीढ़ी मर्यादाहीन है? यह तो सरासर आम पब्लिक पर सोच-समझ पर प्रश्नचिन्ह है. किसी बात या चीज को पूर्णरूप से इग्नोर भी किया जा सकता है. अगर किसी को भाव देगे तो वो भाव खाएगा ही. फिर वाद-विवाद क्यों?

रविवार, 9 अप्रैल 2023

पावर गेम


 राजनीति का पावर गेम समझना हरेक के बस की बात नही है. राजनीति की बिसात पर न जाने कौन सा प्यादा राजा को ठिकाने लगा दे. न जाने किस चाल से पैदल वजीर और वजीर लाचार हो जाए. इस बात का पता जब तक चलता है तब तक चिडिया खेत चुग गई होती है. माना जयचंद इतिहास नही बनाते, लेकिन सत्ताधीशों का तख्ता पलट करने वाला कोई छुपा रूस्तम होता है. समय पर फुंसियों का इलाज न किया जाए तो नासूर तो बनना ही है. फिर क्या जितना बड़ा जख्म उतना बड़े प्रयास. प्रयास असफल होने पर गला फाडऩे का कोई मतलब नहीं. यूं भी कोई किसी चीज का अचानक उदय नहीं होता. सब योजनाबद्ध तरीके से अपने अंजाम तक पहुचता है. सब कुछ पकता ही है फिर चाहे कढ़ाही में पके या कुकर में. कढ़ाई में भी अगर जरूरत से ज्यादा पका दिया तो जलकर खाक ही होता है और अंदरखाने भी कुछ पक रहा हो तो भी संकेत मिलते ही है. ठीक वैसे ही जैसे कुकर में पकने पर भी सीटी तो बजती ही है. सीटी की आवाज पर ध्यान न देने की वजह से ही कुकर फट जाता है. सीधी सी बात है कि समय पर चीजों पर ध्यान न दिया जाए तो उसके घातक परिणाम ही सामने आते है.  फिर न जाने कैसे हो गया, पता ही नहीं चला. दरअसल यही तो पावर गेम है. हर कोई समझ गया तो उत्सुकता और सदमा जैसे शब्दों को कौन पूछेगा. हर बात के संकेत मिलने शुरू हो जाते है, लेकिन दूसरे को कमतर आंकने की गलती का अंदाजा तभी होता है जब चींटी नाक में घुस जाती है.

रविवार, 19 फ़रवरी 2023

परिवर्तन

बुरा वक्त ही हमको जीवन में सफल होने के रास्ते दिखाता है. जबकि अच्छा वक्त ऐसा कर पाने में खुद तो नाकाम साबित होता ही है, साथ ही इंसान को भी निकम्मा बना देता है. क्योंकि जब किसी का अच्छा वक्त चल रहा होता है तो वह आराम तलबी का शिकार हो जाता है. बस यही आराम तलबी उसकी असफलता का कारण बन जाती है. जबकि इसके विपरीत बुरे समय में ही आदमी अपनी सोई शक्तियों को एकत्रित करने का प्रयास करता है, हर पल बुरे वक्त से लड़ता रहता है. ताकि उसका बुरा वक्त किसी तरह उसको मुक्त कर दें. बुरे वक्‍त की छटपटाहट ही इंसान को कुछ कर गुजरने के लिए मजबूर करती है. बुरे वक्‍त का चक्रव्‍यूह इतना भी कठिन नहीं होता कि उसको भेदा न सके. बुरा वक्‍त हर इंसान जिंदगी में जरूर आता है. आज अमिताभ बच्‍चन सफलता के आकाश पर जगमगाते सितारे है, पर उनकी जिंदगी में भी एक वक्‍त ऐसा आया था, जब कर्ज में डूब रहे थे, लगता था कि उनका दौर खत्‍म हो चुका है, लेकिन समय का बदलाव देखिए, आज वह कहां है. जैसे हर रात के बाद दिन आता ही है, ठीक वैसे ही बुरे वक्‍त के बाद अच्‍छा वक्‍त भी आता है, इसलिए अच्‍छे वक्‍त का इंतजार करने के साथ ही अपनी कमियों को दूर करते रहना चाहिए, ताकि जब अच्‍छा वक्‍त आए, तो हम दोबारा न लडखडाएं. अब यह इंसान की सोच पर निर्भर करता है कि वह बुरे वक्त से लड़ने का साहस दिखाता है या फिर उसके आगे आत्म समर्पण करता है. जिसने आत्म समर्पण किया, वह तो कभी सफल हो ही नहीं सकता. जिंदगी के अंधेरे रास्तों पर ही उम्मीद की किरण दिखाई देती है. बुरे वक्त से लड़ने वाला इंसान इतना मजबूत हो जाता है कि कोई भी बाधा उसको उसकी मंजिल पर पहुंचने से नहीं रोक सकती. बुरा वक्‍त ही हमारा सबसे अच्‍छा गुरु होता है, वही हमको सफलता की ओर बढने की प्रेरणा देता है. यह बुरे वक्‍त में हमको मालूम चलता है कि असलियत में कौन हमारा है और कौन पराया. जब आप जीवन में सफल होते हैं; तब आप के दोस्तों को पता चलता है, कि आप कौन हैं! जब आप जीवन में असफल होते हैं; तब आपको पता चलता है, कि आप के दोस्त कौन हैं!


आंधियों को जिद है जहां बिजलियां गिराने की,

मुझे भी जिद है वहीं आशियां बसाने की………..

हिम्मत और हौसले बुलंद हैं, खड़ा हूं अभी गिरा नहीं हूं!!

अभी जंग बाकी है, और मैं हारा भी नहीं हूं!!

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

सुव्यवस्थित त्यौहार पर अव्यवस्थित बाजार




बेतरतीब शहरों में बेढंगी सडकों पर मानकों की खिल्‍ली उडाते व्‍यापरियों की ग्राहकों को लुभाने वाली सोच ही हादसों की आशंका को प्रबल करती है. दीपावली पर सडक के दोनों साइडों के दुकानदारों का अपनी हद को पार करते हुए सामान सजाना स्‍टेटस सिंबल बन गया है. लंबी-चौडी दुकानों से बाहर निकल कर सडकों पर रेहडी व फड वालों का हक मारते व्‍यापारी आखिर क्‍या जताना चाहते है. यूं तो हादसे की आशंका हर वक्‍त बनी रहती है, लेकिन दीपावली के मौके पर इन हादसों की आशंका सौ फीसदी होती है, इन संकरी गलियों में आग या अन्‍य घटना होते ही हाहाकार मच जाता है, कायदे कानून को ताक पर रखकर यही व्‍यापारी सीधे प्रशासन को दोषी करार देते हुए अपना पल्‍ला झाड लेते है. खुद ही सोचिए अतिक्रमण के चलते अच्‍छी खासी चौडाई वाली सडक संकरी गली  बन जाएगी तो हादसा होने पर फायर ब्रिगेड की गाडिया क्‍या आसमान से पानी बरसाएगी. हर वक्‍त शासन प्रशासन को ही दोषी ठहराना भी अच्‍छी बात नहीं है. खुद के गिरेबां में झांक कर देखिए ही हम खुद कितने ईमानदार है. ठेली या फेरी वाले गरीब का सडक पर चादर बिछाकर सामान बेचना तो समझ आता है, लेकिन बडी बडी दुकानों के मालिकों द्वारा सडकों पर सामाना फैलाना गले नहीं उतरता. ऊपर से भीड़ भरे बाजार में फोर व्हीलर वालों आवाजाही अलग. सुव्यवस्थित त्योहार पर अव्यवस्थित बाजार व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह तो है ही?

बुधवार, 12 अक्तूबर 2022

करवा चौथ

 

करवा चौथ. भारतीय संस्कृति का एक सर्वश्रेष्ठ त्यौहार. पिया की लंबी आयु व्रत. अंधेरा छाते की चांद उगने की खबर ब्रेक करने की होड़ में बच्चों की एक नजर आसमां पर तो दूसरी नजर मम्मा पर. बच्चों का यह उत्साह इस त्यौहार की सबसे बड़ी खूबसूरती है. बाजारवाद ने भले ही व्रत पर भी कब्जा कर लिया हो, यह अलग बात है. वैज्ञानिकों की नजर में चांद भले ही सैटेलाइट्स का पार्किंग स्थल हो, लेकिन पिया की लंबी उम्र के लिए व्रत को को तोड़ने की जिम्मेदारी तो चांद ही निभाता है. भारत में वैसे तो चौथ माता जी के कई मंदिर स्थित है, लेकिन सबसे प्राचीन एवं सबसे अधिक ख्याति प्राप्त मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गाँव में स्थित है. चौथ माता के नाम पर इस गाँव का नाम बरवाड़ा से चौथ का बरवाड़ा पड़ गया. चौथ माता मंदिर की स्थापना महाराजा भीमसिंह चौहान ने की थी.

करवा चौथ व्रत-कथा 1 –

एक साहूकार था जिसके सात बेटे और एक बेटी थी | सातों भाई व बहन एक साथ बैठ कर भोजन करते थे|एक दिन कार्तिक की कृष्ण पक्ष की चौथ का व्रत आया तो भाई बोला की बहन आओ भोजन करे|बहन बोली की आज करवा चौथ का व्रत है, चाँद उगने पर ही खाऊगी |

तब भाइयो ने सोचा की चाँद उगने तक बहन भूखी रहेगी तो एक भाई ने दिया जलाया,दूसरें भाई ने छलनी लेकर उसे ढंका और नकली चाँद दिखाकर बहन से कहने लगा की चल चाँद निकल आया है –अर्ध्य दे लें |बहन अपनी भाभियों से कहने लगी की चलो अर्ध्य दें ,तो भाभिया बोली,तुम्हरा चाँद उगा होगा हमारा चाँद तो रात में उगेगा | बहन ने अकेले ही अर्ध्य दे दिया और खाना खाने लगी तो पहले ही ग्रास में बाल आ गया, दूसरे ग्रास में कंकड आया और तीसरा ग्रास मुँह तक किया तो उसकी ससुराल से संदेशा आया कि उसका पति बहुत बीमार है जल्दी भेजो |

माँ ने जब लड़की को विदा किया तो कहा की रास्ते में जो भी मिले उसके पांव लगना और जो कोई सुहाग का आशीष दे तो उसके पल्ले में गाँठ लगाकर उसे कुछ रूपये देना|बहन जब भाइयों से विदा हुई तो रास्ते में जो भी मिला उसने यही आशीष दिया की तुम सात भाइयो की बहन तुम्हारे भाई सुखी रहें और तुम उनका सुख देखो|
सुहाग का आशीष किसी ने भी नही दिया | जब वह ससुराल पहुँची तो दरवाजे पर उसकी छोटी नन्द खड़ी थी, वह उसके भी पाव लगी तो उसने कहा की सुहागिन रहो ,सपूती होओं उसने यह सुनकर पल्ले में गाठ बांधी और नन्द को सोने का सिक्का दिया|तब भीतर गई तो सास ने कहा कि पति धरती पर पड़ा है,तो वह उसके पास जाकर उसकी सेवा करने के लिए बैठ गई |
बाद में सास ने दासी के हाथ बची – कुची रोटी भेज दी इस प्रकार से समय बीतते – बीतते मार्गशीष की चौथ आई तो चौथ माता बोली –करवा ले, करवा ले ,भाईयो की प्यारी बहन करवा ले | लेकिन जब उसे चौथ माता नही दिखलाई दी तो वह बोली हे माता ! आपने मुझे उजाड़ा है तो आप ही मेरा उध्दार करोगी | आपको मेरा सुहाग देना होगा | तब उस चौथ माता ने बताया की पौष की चौथ आएगी, वह मेरे से बड़ी है उसे ही सब कहना | वही तुम्हरा सुहाग वापस देगी | पौष की चौथ आकर चली गई , फाल्गुन की चली गई, चैत्र ,वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, भादों की सभी चौथ आयी और यही कहकर चली गई की आगे वाली को कहना |असौज की चौथ आई तो उसने बताया की तुम पर कार्तिक की चौथ नाराज है, उसी ने तुम्हरा सुहाग लिया है ,वही वापस कर सकती है ,वही आएगी तो पाव पकड़ कर विनती करना | यह बताकर वह भी चली गई |
जब कार्तिक की चौथ आई तो वह गुस्से में बोली –भाइयों की प्यारी करवा ले ,दिन में चाँद उगानी करवा ले, व्रत खंडन करने वाली करवा ले, भूखी करवा ले, तो यह सुनकर वह चौथ माता को देख कर उसके पांव पकड़कर गिडगिडाने लगी | हे चौथ माता !मेरा सुहाग तुम्हारे हाथो में है – आप ही मुझे सुहागिन करे | तो माता बोली –पापिन ,हत्यारिन मेरे पांव पकड़कर क्यों बैठ गई |तब वह बोली की जो मुझसे भूल हुई उसे क्षमा कर दो, अब भूल नहीं करुगी, तो चौथ माता ने प्रसन्न होकर आखो का काजल,नाखूनों में से मेहदी और टीके में से रोली लेकर छोटी उंगली से उसके आदमी पर छीटा दिया तो वह उठकर बैठ गया और बोला की आज मै बहुत सोया |
वह बोली – क्या सोये,मुझे तो बारह महीने हो गये, अब जाकर चौथ माता ने मेरा सुहाग लौटाया |तब उसने कहा की जल्दी से माता का पूजन करो| जब चौथ की कहानी सुनी, करवा का पूजन किया तो प्रसाद खाकर दोनों पति –पत्नी चौपड़ खेलने बैठ गये |नीचे से दासी आयी, उसने दोनों को चौपड़ पांसे से खेलते देखा तो उसने सासु जी को जाकर बताया |तब से सारे गांव में यह बात प्रसिद्ध हो गई की सब स्त्रींया चौथ का व्रत करे तो सुहाग अटल रहेगा |

जिस प्रकार से साहूकार की बेटी का सुहाग दिया उसी प्रकार से चौथ माता सबको सुहागिन रखना | यही करवा चौथ के उपवास की सनातन महिमा है |


शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

डाकिया डाक लाया


विश्व डाक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

डाकिया डाक लाया, डाक लाया

खुशी का पयाम, कहीं दर्द नाम

डाकिया डाक लाया।।

सुपर स्टार राजेश खन्ना की फिल्म का यह गाना तो आपने सुना ही होगा। साल 1977 में जब यह फिल्म रिलीज हुई उस समय एक-दूसरे की कुशल-क्षेम पूछने का यही सर्वोत्तम तरीका था। एक चिट्ठी के इंतजार में दिनों-महीनों निकल जाते थे। फिर कहीं डाकिया दिख जाए तो पूछ-पूछकर उसे परेशान कर दिया जाता था कि हमारी चिट्ठी आयी या नहीं। उस दौर में इनकी धमक थी। अब व्हाट्सएप और वीडियो कॉलिंग के दौर में इनको कौन पूछता है? हर साल 9 अक्टूबर को देश में विश्व डाक दिवस मनाया जाता है। विश्व डाक दिवस ‘यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन’ के गठन के लिए 9 अक्टूबर 1874 को स्विटजरलैंड में 22 देशों ने एक संधि की थी। उसके बाद से हर साल 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस के तौर पर मनाया जाता है। भारत एक जुलाई 1876 को ‘यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन’ का सदस्य बना था।

सोमवार, 4 जुलाई 2022

तीन कविता

तुम न पहचानो

कोई बात नहीं
लेकिन
यह भी तो मत कहो
मुझे याद ही नहीं
मालूम है बंधे है हम
सामाजिक बंदिशों में
सपने है कुछ मेरे तो
सजाये है पलकों पर
तुमने भी कुछ ख्वाब
जरुरी भी नहीं कि
मिल जाए सफर में
जब रास्ते ही हो अलग
तब कैसे हो मंजिल एक
-हरीश भट्ट

कहानियां
तुम मत सुनाओ मुझे
बीते वक़्त की कहानियां
लेना था जब फैसला तब
क्यों गंवाया था समय
फिजूल की बहसबाजी में
अँधेरे में है भविष्य तो क्या
भूत का तो पता है जो बीत गया
अब उन यादों का क्या करना है
जिन्होंने कर दिया ख़राब वर्तमान
अब तो खुद ही कर लेता हूँ फैसला
तुम मत सुनाओ मुझे
बीते वक़्त की कहानियां
अभी तय करनी है एक लम्बी दूरी
पहले ही ठहर गया था तुम्हारे लिए
अब वक़्त कम है और जाना है दूर
तुम चल सको तो चलो साथ मेरे
वरना तुम करो इंतज़ार समय का
जो कभी नहीं आता लौट कर दोबारा
इसलिए न करो अब फिर से जिद
तुम मत सुनाओ मुझे
बीते वक़्त की कहानियां
-हरीश भट्ट

मुलाकात
भूल जाना उन बातों को
कह दी थी जो गाहे-बगाहे
कुछ अनसुलझी मुलाकातों में
बुने थे जो ख्वाब कभी मैंने
उधड़ गए वो बिछड़ते ही हमारे
अब नहीं अर्थ कोई उन बातों का
नहीं कोई ठिकाना मुलाकात का
बस अब सिर्फ एक ही तमन्ना
भूल जाना उन बातों को
सुन ली थी जो कभी तुमने
मत सुलझाना मेरी बातों को
उलझ जाएगी जिंदगी हमारी
मेरी नादानियां, तुम्हारी मासूमियत
कब उड़ा ले गया वक़्त का परिंदा
न तुम्हे पता चला न मुझे लगी खबर
बस अब तो सिर्फ कहना है एक बार
भूल जाना उन बातों को
कह दी थी जो गाहे-बगाहे
कुछ अनसुलझी मुलाकातों में
-हरीश भट्ट